Sunday 26 November 2017

नज़र आता है...

खोजने गया मनसूबे और सुकून को जब,
झोकों में बहता हुआ इल्जाम नज़र आता है|


मुश्किलों में बेबस और लाचार हुआ कुछ,
तो हर एक सांस में एहसान नज़र आता है|


मन मार के जब बैठा शांत जब भी कभी,
तो फुरसत में भी गुनाहों का गुमान नज़र आता है|


अंत में कितनो को टोकने और रोकने के बाद,
खुद को सँभालने को सिर्फ जाम नज़र आता है|


समझा दूँ गर कभी कोई मान ले बात मेरी,
तो मुहँ फेरता हर एक इंसान नज़र आता है|


कैसे करूँ अब बयान अपने जज्बातों को,
जब खुद में ही अक्सर शैतान नज़र आता है|


जब सोचा सीखा दूँ जीवन का मतलब ही सभी को,
आँखे खोलते ही सामने समशान नज़र आता है|

No comments:

Post a Comment