नज़र आता है...
खोजने गया मनसूबे और सुकून को जब,
झोकों में बहता हुआ इल्जाम नज़र आता है|
मुश्किलों में बेबस और लाचार हुआ कुछ,
तो हर एक सांस में एहसान नज़र आता है|
मन मार के जब बैठा शांत जब भी कभी,
तो फुरसत में भी गुनाहों का गुमान नज़र आता है|
अंत में कितनो को टोकने और रोकने के बाद,
खुद को सँभालने को सिर्फ जाम नज़र आता है|
समझा दूँ गर कभी कोई मान ले बात मेरी,
तो मुहँ फेरता हर एक इंसान नज़र आता है|
कैसे करूँ अब बयान अपने जज्बातों को,
जब खुद में ही अक्सर शैतान नज़र आता है|
जब सोचा सीखा दूँ जीवन का मतलब ही सभी को,
आँखे खोलते ही सामने समशान नज़र आता है|
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