Tuesday 23 February 2016

## सत्य #।।।



फर्क होता है बात और सच्चाई में, 
अर्थ में और बात की गहराई में,
पर मतलब तो अकसर गलत से होता है,
सीखना जरुरी अंतर सत्य और परछाई में।

कुछ पल इन्सां बात टटोलने पे लगाता है,
और अपनी हरकत से झुक भी जाता है,
और फिर संभाले कितना भी माहोल को,
मूख से निकला वो वापस कहाँ आता है।

जरुरी नहीं मेरी इन बातों को मान दो,
ना ही मेरी बात सुन कोई एहसान दो,
लेकिन एक कृत से सब बिखर जाता है क्या,
बाकी की मेरी हरकतों पे भी तो ध्यान दो।

पता है बहोत बुरा हूँ मैं, खुदको पहचानता हूँ,
किसिको धोंका नहीं दिया यह भी जानता हूँ,
दुःख का कारण अक्सर बनता हूँ सबके,
लेकिन दवा भी बना हूँ ये भी मानता हूँ।

मेरी कुछ बातें दिल को चुभती जरूर है,
और कुछ तो शब्दों को भी मजबूर है,
टटोल दी तो बुरी लग गई बातें मेरी,
तो मेरा बोलना ही क्या एक कसूर है।

आँखों से दिखे वो सत्य हमेशा नहीं होता,
कानो सुनी बात का भी भरोसा नहीं होता,
मनन करना मेरी बातों का तन्हाई में ही,
कभी-२ खंजर लिए खड़ा भी मुझरिम नहीं होता।