Tuesday 18 August 2015

॥॥ कोशिश...॥॥

हर्ज़ क्या है जो मुश्किलों को मैं दूर करूँ,
और पार पाने को जतन भी जरूर करूँ,
रटते रहना की हौसले काम करेंगे कभी,
फिर हार के मैं आखिर में इन्हें मंजूर करूँ॥

होते हैं जीने के भी इस दौड़ में मायने कई,
और टूट जाते हैं होड़ में हर्ष के आईने सभी,
मुड़ के देखूं तो दिखतें हैं धुंएँ प्रयास के मेरे,
और जाता हूँ इस भीड़ में बाएं तो दाहिने कभी॥

फ़िक्र तो होती है अक्सर ही अपनों की यहाँ,
पर कैसे कृत्य करूँ साकार इस वास्ते वहाँ,
थक के बैठ जाऊँ गर तो होगा अब मान कम,
और प्रयत्न न करूँ तो बताओ जाऊँ कहाँ॥

Saturday 15 August 2015

॥॥ संछेप... ॥॥

सना हूँ जबसे रंगो की बातों से,
दिल और कभी दिमाग के अल्फ़ाज़ों से,
समीकरण मिलाके आखिर में जाना,
अब होगी रंगत पूरी अलग-2 साज़ों से॥

सवालों, जवाबों का छाया है ऐसा असर,
की जब भी जाता हूँ इस शहर से उस शहर,
कुछ गुम तो कभी मैं बिलकुल खो जाता हूँ,
साँसे तो हैं लेकिन बचा नहीं अब कोई कसर॥

और संछेप में बयान करूँ क्या अब तक़दीर,
सारे प्यादे ढेर हुए और बचा है सिर्फ वजीर,
किनारे पे आ अब कोई गलत चाल न चल दूँ,
की छीन जाए एकमात्र जो बाकी है ये शरीर॥