Sunday 1 March 2015

॥॥ औकात...॥

मेरी चुप्पी को आवाज़ समझ,
कुछ होगी तो इसमें बात सहज़,
तुझे अनदेखा करने की चाहत है,
इसमें दिखती मेरी औकात महज़॥

जिद्द है ये तेरी तो मैं भी अक्खड़,
यह है बस मेरी एकमात्र पकड़,
मुझे समझाने को कुछ भी कर,
कुछ है जिसने रखा हुआ है जकड़॥

ये टेसू न बहा, न कर कोई फरियाद,
ये रास्ता छोड़ तो होगी जिंदगी आबाद,
होता है सब हासिल खुद को समझ जाने में,
और हर कारवां बन जाता है आखिर याद॥

तो होती है अक्सर क्यों एक ही ज़िक्र,
खुद की नहीं बस किसी बेगाने की फ़िक्र,
अब सोचो नहीं ज्यादा, ये मेरा मत मात्र,
बस खोओ नहीं इन-सब में स्वम् का इत्र॥