Wednesday 3 December 2014

॥॥ पुतले ॥॥

सब माटी के पुतले, मैं पत्थर की मूरत हूँ,
कोई न समझे कभी न समझे मैं तो ऐसी सूरत हूँ,
पास आये वो और ही उलझे,
और रह कर भी रह न पाये बन जाऊ ऐसी जरुरत हूँ।।

प्यार की बात कभी ना करना ये पत्थर दिल दोहराये,
पछताना ही है तो फिर कोई यहां क्या कर पाए,
भूल है तेरा पास में आना इसीलिए,
बहोत है टोका और बार-बार ये पापी मन यही बतलाए॥

क्यों तुझे किसी की आस है इस जंगल में आके,
खाए बहोत ही धोंके पर फिर भी प्रेम को ताके,
सुधर जा अब भी देर न हुई,
पर तू हटि, अब भी उसी प्यास में रह-रहकर झांके॥

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