Saturday 29 November 2014

।।। क्या करूँ।।।

उस बात की अब बात क्या करूँ,
तेरे साथ का अब साथ क्या करूँ,
ज़िक्र क्या करूँ किस्सों का अब,
होना मेरा अब तेरे बाद क्या करूँ॥

यादें भुलाके अब याद क्या करूँ,
भीड़ में खोने की बात क्या करूँ,
पोछूँ आँसु मुड़के देखूं पीछे जब,
जीना छोड़के और बर्बाद क्या करूँ॥

मर चूका अब और ख़ास क्या करूँ,
इससे ज्यादा आगे बकवास क्या करूँ,
कोई ना देगा साथ छोड़ जायेंगे सब,
इतने धोकों के बाद अब आस क्या करूँ॥

तकदीर के इशारे देख क्या करूँ,
चक्रव्यूह भेदने का साहस क्या करूँ,
रोते देख नम हो जाती हैं आँखे कब,
बनावटी नकली अश्रु समझ क्या करूँ॥

Saturday 22 November 2014

॥॥॥ पैमाना॥॥॥

कोई आदत नही मुझे आशियाना दिखाने की,
कोई ज़िद्द भी नही हालत अपनी समझाने की,
पर की है कोशिश हमेशा तुझे मुस्कुराता देखूं,
तूने ही तमन्ना न रखी कभी मेरे रुक जाने की॥

उम्र बीत जाया करती है बातें समझाने में,
मजा तो जरूर आया होगा मुझे आजमाने में,
काश तेरे पैमाने में खरा उतरता कुछ हद तो,
अब बस कहीं का नही रहा अब इस जमाने में॥

पर मैं कोई वादा नही जिसे बस तोड़ जाओ,
कोई बात भी नही जिसे जब चाहो मरोड जाओ,
मैं एहसास हूँ तेरे हर एक विशवास का बस,
ना हूँ कोई गम जिसे भीड़ में बस छोड़ जाओ॥