Sunday 15 June 2014

||||||||||||| अंत! |||||||||||||


पल-२ एक बोझ सा है,
कभी-२ एक खरोंच सा है,
फैसले करे ये लकीर-ए-हथेली,
कभी-२ ये सोच सा है,

उठी-२ एक एहसाह भी है,
दबी-२ एक प्यास भी है,
जागेगा अंदर का इंसान कभी,
दबी-२ ये आस भी है,

रुके-२ सब कदम क्या कहें,
झुखे-२ सब अश्क क्या कहें,
मुर्दो की इस मायूस दुनिया में,
झुके-२ ये शख्श क्या कहें,

धीरे-२ बर्बाद हुआ हुँ,
चलते-२ फरियाद हुआ हुँ,
गूंगी भीड़ में आगे बढ़के,
चलते-२ महताब हुआ हुँ,

डरते- अब मौन हो गया,
बढ़ते- अब कौन हो गया,
खतम हो ये सफर बिन मंजिल मिले,
बढ़ते- दबाव में सोन(सोना) हो गया ||

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