Thursday 26 October 2017

### बेहतर कौन ...

उम्दा था विचार मेरा लेकिन मेरे मायनो में,
और हो न सकी शर्त पूरी दुनिया के आइनों में।


रुक गया फिर सोचने और रह गयी बात अधूरी,
कोशिशें भी न हुई मुकम्मल, जो थी बहोत जरुरी।


सुना है परिंदो पे किसी का जोर नहीं है चलता,
और इनके हौसलों का कभी सूर्य भी नहीं है ढलता।


और इसी भरोसे में मैं भी कुछ बढ़ता चला गया,
सैकड़ों जिद्द लिए बेवज़ह ही उड़ता चला गया।


विशाल हो कितना भी पर इंसान बहोत है लाचार,
पर फिर भी पीछे न हटे करने सपनो को साकार।


कभी खुद से तो कभी खुदा से अक्सर ये डरता है, 

 लेकिन काम आये किसीके ऐसा क्यों नहीं करता है


                 परिन्दे ही है बेहतर जो टूटा घर फिर से बनाएं,
                 न की इंसान के माफिक बदले की आग जलाएं।


                मन मुताबिक न हुई तो कहता सब करते अत्याचार है,
              लेकिन खोज से पता चला की इंसान बहोत ही मक्कार है।

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