Tuesday 24 June 2014

||| दुखी हुँ अचेत नहीं... |||

जाते-जाते एक ऐहसान करते जा,
अपने सारे दर्द मेरे हिस्से भरते जा,
और कभी मेरी ख्वाइश का ज़िक्र ना करना,
अपनी खुशी में कभी मेरी फ़िक्र ना करना...

बहोत फ़ासले तय किये इस मुकाम पे आने को,
सहा है दर्द बहोत यहाँ सुकून न पाने को,
मौत की सेज़ भी सजी तो मौत लौटती बोली,
तू वक़्त ले थोड़ा और अपना दर्द बढ़ाने को...

दुःख और दर्द में अंतर आसान और इतना है,
दुःख में सिर्फ हार और दर्द में ही जितना है,
और दुःख में आते हैं विचार तो सच्चे हैं न,
क्युकि सफेदी मुश्किल और दाग अच्छे हैं न...

ये हुई दुःख-दर्द की घिसी-पिट्टी पुरानी बात,
अब है बारी करने की अर्थ की सायानी बात,
किसी भी दशा में हो बस खुशी बांटते रहो,
ना कर सको ये तो सिर्फ दुःख ही छांटते चलो...

और तेरे होने की खुशी भी संभाल ही थी,
तो तेरे जाने का गम उससे बड़ा तो नहीं,
हा मैं दुखी हूँ पर अचेत ना ही मक्कार यहाँ,
अधूरा हुँ और ना हो सकूंगा कभी साकार यहाँ...

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