पल-२ एक बोझ सा है,
कभी-२
एक खरोंच सा है,
फैसले करे ये लकीर-ए-हथेली,
कभी-२
ये सोच सा है,
उठी-२
एक एहसाह भी है,
दबी-२
एक प्यास भी है,
जागेगा अंदर का इंसान कभी,
दबी-२
ये आस भी है,
रुके-२
सब कदम क्या कहें,
झुखे-२
सब अश्क क्या कहें,
मुर्दो की इस मायूस दुनिया में,
झुके-२
ये शख्श क्या कहें,
धीरे-२
बर्बाद हुआ हुँ,
चलते-२
फरियाद हुआ हुँ,
गूंगी भीड़ में आगे बढ़के,
चलते-२
महताब हुआ हुँ,
डरते-२ अब मौन हो गया,
बढ़ते-२ अब कौन हो गया,
खतम हो ये सफर बिन मंजिल मिले,
बढ़ते-२ दबाव में सोन(सोना) हो गया ||
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